Prachi Prajna (Jun 2022)

संस्कृत तथा पारसीक ‘मन्त-वन्त’ प्रत्यय का भाषिक विकास

  • Mohit Kumar Mishra

Journal volume & issue
Vol. VIII, no. 14
pp. 1 – 8

Abstract

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विश्व के समस्त भाषा-परिवारों में भारोपीय परिवार की ‘भारत-ईरानी’ शाखा का स्थान है जिसे आर्यशाखा या हिन्द-ईरानी शाखा कहा जाता है। संस्कृत तथा पारसी (फ़ारसी) इस शाखा की अत्यंत समृद्ध सह-भाषाएँ हैं तथा दोनों ही भाषाओं के शाब्दिक एवं भाषिक (व्याकरणात्मक) पक्ष की अन्यतम विशेषता रही है, जो अन्य भाषा-परिवारों में उतनी नहीं मिलती है। संस्कृत तथा फ़ारसी में सुप्तिङन्त से निर्मित अनेक पदावली में मौलिक भाषिक साम्य दिखाई देता ही है। साथ में इनके प्रत्ययों में भी एकरूपता मिलती है। जैसे–मन्त>मन्द, वान्>बान के रूप बुद्धिमन्त-ख़िरदमन्द, उष्ट्रवान्-शुतूरबान आदि। इस शोधलेख में संस्कृत और पारसी भाषा में मतुप् प्रत्यय पर चर्चा करते हुए मन्त-वन्त के भाषिक स्वरूप तथा यूरोपीय भाषाओं में उनकी स्थिति और विकास को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।

Keywords