Interdisciplinary Journal of Yagya Research (Oct 2022)

यज्ञ प्रयोजन में सुसंस्कारिता का समावेश

  • Bandana Kumari

DOI
https://doi.org/10.36018/ijyr.v5i2.89
Journal volume & issue
Vol. 5, no. 2

Abstract

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संस्कारों की संस्कृति ही भारतीय संस्कृति का मूल है। जन्म के समय मनुष्य कि स्थिती हमेशा नर पशु जैसी ही मानी गयी है लेकिन जब वो अपने अंदर संस्कारों का समावेश करता है तथा उसकी रीति-नीति को अपनाता है तब जाकर वह मनुष्य बन पाता है और इसी पद्धति को संस्कार पद्धति का नाम दिया जाता है। किसी भी वस्तु का महत्व उतना ही है जितना उसकी सुंदरता उभारने वाली कलाकारिता और कुशलता की है। यज्ञ जैसे महान कार्य को बडे आदर पूर्वक, सावधानी, तथा पवित्रता के साथ किया जाना चाहिये। यज्ञ के प्रयोजन में भूमि शोधन संस्कार, साधनो का पवित्रिकरण, यजमान का शुद्धिकरण तथा यज्ञाग्नि संस्कार आदि सभी संस्कारो को बडे भाव के साथ करना चाहिये तब जाकर महत्वपुर्ण लाभों की प्राप्ति कराता है। गीता में आधे अधुरे और लापरवाही से किये गये यज्ञ को ‘तामस यज्ञ’ कहा गया है। इस शोध पत्र के माध्यम से यज्ञ प्रयोजन में सूक्ष्म संस्कारो की प्रविधियों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है।

Keywords