Dev Sanskriti: Interdisciplinary International Journal (Jan 2021)

श्रीमद्भगवद्गीता में निहित शांति शिक्षा

  • BADRI NARAYAN

DOI
https://doi.org/10.36018/dsiij.v17i.147
Journal volume & issue
Vol. 17

Abstract

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श्रीमद्भगवद्गीता औपनिष्दिक दर्शन का विश्वसमाघृत प्रतिनिधि ग्रन्थ है, जिसके उपदेश प्राणिमात्र के कल्याण के लिये हैं । इन उपनिषदों का अनुगमन करके हम समसामयिक शैक्षिक समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं । गीता के अनुसार आंतरिक शांति, प्रेम व अपनत्व जैसे पवित्र भाव वास्तविक ज्ञान की कसौटी हैं । इसमें अशांति व दुःख के कारण एवं अन्तःकरण की प्रसन्नता व शांति के उपाय का पूर्णतः व्यावहारिक विवेचन किया गया है । कामना एवं स्वार्थसिद्धि के लिये किये गये कर्म सभी प्रकार की अशांति एवं संघर्ष के कारण हैं । गीता कामनाओं एवं कर्मों के नियमन का मार्ग बताती है, जिससे वैयक्तिक एवं वैश्विकशांति व सौहार्द का विकास होगा । वैयक्तिक शांति हेतु गीता ने ‘निष्कामकर्म’ एवं ‘स्थितप्रज्ञ ’ अवस्था का आदर्श प्रस्तुत किया है । निष्काम कर्म का अर्थ लोककल्याण की भावना से निःस्वार्थ कर्म करना है । इस प्रकार का कुशल कर्म पूर्ण समायोजित, स्थिर व शांत चित्त वाला ‘स्थितप्रज्ञ’ व्यक्ति ही कर सकता है । इन आदर्शों से ही वैश्विकशांति व सौहार्द का मार्ग प्रशस्त होता है । गीता में वैश्विक शांति हेतु वाँछित वैयक्तिक गुणों को दैवीय संपदा तथा अशांति जनक अवगुणों को आसुरी संपदा कहा गया है । शिक्षा का उद्देश्य ‘दैवीय संपदा’ का विकास तथा ‘आसुरी सम्पदा’ का विनाश है । आधुनिक शिक्षा में शांति व मूल्य संकट निवारण हेतु हमें भगवद्गीता के आलोक में अपनी शिक्षा व्यवस्था का परिमार्जन एवं उन्नयन करना होगा । The Shrimad Bhagavad Geeta is a cosmopolitan representative of the ceremonial philosophy, whose teachings are for the welfare of all beings. By following these teachings, we can find solutions to contemporary educational problems. According to the Geeta, pious feelings like inner peace, love and affinity are real indicator of wisdom. Geeta describes causes of unrest and sorrow along with ways to obtain happiness of conscience and peace. The deeds done for the desire and self-determination are cause of all kinds of unrest and conflict. The Geeta describes ways of regulating desires and deeds, which can lead to the development of personal and global peace and harmony. For personal peace, the Gita has presented the ideal of 'Nishkam karma' and 'Sthitpragya'. Nishkam karma means selfless actions in the spirit of public welfare. This type of skilled work can only be done by a 'Sthitpragya', a person with a perfectly adjusted, steady and calm mind. These ideals pave the way for global peace and harmony. In the Geeta, the personal qualities desired for global peace have been called Divine wealth and unrestrained qualities are Devilish Wealth. The aim of education is the development of 'divine wealth' and removal of 'demonic wealth'. For having peace and solving value crisis, modern education system needs to be restructured in the in the light of the teachings of Bhagavad Geeta.

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